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Explainer : पाकिस्तान ने यूएस को दिया पासनी पोर्ट का ऑफर, India-China पर क्या होगा असर?

पाकिस्तान ने अमेरिका को अरब सागर में नया पासनी बंदरगाह बनाने का प्रस्ताव देकर भू-राजनीति का पासा फेंका है। मुनीर की यह चाल चीन के ग्वादर और भारत के चाबहार के लिए सीधी चुनौती है। जानें इस ऑफर से भारत चीन पर क्या असर असर होगा?

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Ajit Kumar Pandey
Explainer : पाक ने यूएस को दिया पासनी पोर्ट का ऑफर, भारत-चीन पर क्या होगा असर? | यंग भारत न्यूज

Explainer : पाकिस्तान ने यूएस को दिया पासनी पोर्ट का ऑफर, India-China पर क्या होगा असर? | यंग भारत न्यूज Photograph: (YBN)

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । पाकिस्तान का अमेरिका को अरब सागर में नया बंदरगाह Port बनाने का प्रस्ताव केवल आर्थिक मदद नहीं, बल्कि एक जटिल भू-राजनीतिक मास्टरस्ट्रोक है। सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर Asim Munir की यह चाल क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को हिला सकती है। पासनी में बंदरगाह बनने से चीन के ग्वादर और भारत के चाबहार की अहमियत पर सीधा असर पड़ेगा, जिससे अरब सागर Arabian Sea में तनाव का नया अध्याय शुरू हो सकता है। यह कदम मध्य एशिया और महत्वपूर्ण खनिजों तक पहुंच के लिए एक नई होड़ पैदा करेगा। आइए Young Bharat News के इस एक्प्लेनर से समझतें हैं क्या है पाकिस्तान की पूरी रणनीति?

पाकिस्तान: 'पोर्ट डिप्लोमेसी' का नया दांव

पाकिस्तान ने हाल ही में अमेरिका को अरब सागर के तट पर नया बंदरगाह बनाने और संचालित करने का प्रस्ताव दिया है। 

यह प्रस्ताव 2 अरब की मांग के साथ पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर के रणनीतिक सलाहकारों ने अमेरिकी अधिकारियों के सामने रखा है। 

इस परियोजना के तहत, अमेरिकी निवेशकों द्वारा बलूचिस्तान के छोटे शहर पासनी Pasni में एक टर्मिनल का निर्माण किया जाएगा। 

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चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव BRI के तहत ग्वादर Gwadar बंदरगाह पर चीन का बढ़ता दबदबा पाकिस्तान को एक नया संतुलन साधने के लिए मजबूर कर रहा है। 

पासनी प्रस्ताव: पाकिस्तान के लिए आर्थिक राहत और अमेरिका को क्षेत्र में पैर जमाने का मौका दोनों है। 

पाकिस्तान की 'भू-राजनीतिक शतरंज' 

पासनी कोई आम मछली पकड़ने वाला शहर नहीं है इसकी भू-रणनीतिक स्थिति Geo-Strategic Location ही इसे इतना महत्वपूर्ण बनाती है। चीन का ग्वादर पासनी चीन द्वारा विकसित किए गए ग्वादर बंदरगाह से मात्र 100 किलोमीटर दूर है। अमेरिका की उपस्थिति ग्वादर की 'मोती की माला' String of Pearls रणनीति को सीधे चुनौती देगी। 

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ईरान की सीमा: यह ईरान की सीमा से लगभग 160 किलोमीटर दूर है। 

भारत का चाबहार: पासनी भारत द्वारा विकसित किए जा रहे चाबहार बंदरगाह Chabahar Port से भी लगभग 300 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस निकटता के कारण पासनी बंदरगाह परियोजना भारत, चीन और ईरान सहित पूरे क्षेत्र की क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा और शक्ति समीकरणों पर गहरा प्रभाव डाल सकती है। 

भारत की बढ़ी चिंता चाबहार-ग्वादर की 'टक्कर' में अब अमेरिकी एंट्री 

भारत के लिए पाकिस्तान का यह प्रस्ताव गंभीर रणनीतिक चिंता का विषय है। भारत चाबहार बंदरगाह के माध्यम से ईरान और मध्य एशिया के साथ व्यापार और संपर्क Connectivity मजबूत कर रहा है। 

रणनीतिक घेराव: पासनी बंदरगाह पर अमेरिकी नौसैनिक/आर्थिक उपस्थिति अरब सागर में एक नई शक्ति का प्रवेश होगी जो भारत की पश्चिमी नौसैनिक कमांड Western Naval Command के लिए एक नई चुनौती पेश कर सकती है। 

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क्षेत्रीय अस्थिरता: चाबहार और ग्वादर के बीच पहले से ही तीव्र क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा है। पासनी में अमेरिका के आने से यह त्रिकोणीय प्रतिस्पर्धा और भी अधिक जटिल और तनावपूर्ण हो जाएगी। 

खनिज संसाधनों पर पकड़: अमेरिका की दिलचस्पी पाकिस्तान के महत्वपूर्ण खनिजों जैसे तांबा और एंटीमनी में भी है जो मिसाइल निर्माण जैसे रक्षा उद्योगों में अहम हैं। इन खनिजों तक अमेरिका की पहुंच भारत के रणनीतिक हितों को प्रभावित कर सकती है। 

भारत को अब इस 'अमेरिकन पोर्ट' फैक्टर को ध्यान में रखकर अपनी अरब सागर नीति और चाबहार की सुरक्षा रणनीति पर पुनर्विचार करना होगा। 

चीन की BRI पर सीधा हमला? पासनी क्यों है ड्रैगन के लिए एक चेतावनी 

पाकिस्तान की इस चाल से सबसे ज्यादा विपरीत असर चीन पर पड़ सकता है। 

ग्वादर का महत्व कम होना: चीन ने ग्वादर में भारी निवेश किया है जो उसकी महत्वाकांक्षी BRI बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का एक महत्वपूर्ण समुद्री प्रवेश द्वार है। 

पासनी में अमेरिकी निवेश: सीधे तौर पर ग्वादर के क्षेत्रीय एकाधिकार और रणनीतिक मूल्य को कम कर सकता है। 

विस्तारवादी नीतियों को चुनौती: अगर अमेरिका पासनी में आता है तो यह माना जाएगा कि यह चीन की हिंद महासागर में बढ़ती विस्तारवादी नीतियों के खिलाफ एक रणनीतिक जवाबी कदम है। 

मध्य एशियाई कॉरिडोर: ग्वादर चीन को मध्य एशिया और उससे आगे तक ऊर्जा और व्यापार गलियारा Corridor प्रदान करता है। 

पासनी पोर्ट: मध्य एशिया में अमेरिकी प्रभाव बढ़ाने का एक नया रास्ता खोल सकता है। यह कदम बीजिंग और वाशिंगटन के बीच क्षेत्रीय प्रभुत्व की लड़ाई को अरब सागर के किनारे तक खींच लाएगा। 

यह प्रस्ताव उस समय आया है जब पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप Donald Trump के बीच बेहतर संबंध विकसित होने की खबरें सामने आई हैं। 

नोबेल नामांकन: पाकिस्तानी अधिकारियों ने सार्वजनिक तौर पर ट्रंप को भारत-पाकिस्तान युद्धविराम में उनकी भूमिका जिस दावे को भारत ने खारिज किया के लिए नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया था। 

रणनीतिक झुकाव: एक पाकिस्तानी सलाहकार के अनुसार, युद्ध के बाद 'अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों की पूरी कहानी बदल गई है।' 

पासनी की योजना: पाकिस्तान के अमेरिका की ओर बढ़ते रणनीतिक झुकाव को दर्शाती है जो चीन के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने का प्रयास हो सकता है। 

आर्थिक संकट से मुक्ति: पाकिस्तान अपनी डगमगाती अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए बेताब है और यह दो अरब का प्रस्ताव विदेशी निवेश आकर्षित करने और अपनी अंतर्राष्ट्रीय स्थिति मजबूत करने की एक बड़ी कोशिश है। 

फिलहाल यह पहल एक 'व्यावसायिक विचार' है और ट्रंप प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों ने इस पर कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की है, लेकिन यह दक्षिण एशिया की भू-राजनीतिक उथल-पुथल में एक नया समीकरण बनाने की क्षमता रखता है। 

अमेरिका की क्या होगी रणनीति? क्यों होगी इस ऑफर में दिलचस्पी? 

पाकिस्तान के इस ऑफर में अमेरिका की गहरी दिलचस्पी हो सकती है क्योंकि, यह क्षेत्रीय प्रभाव बढ़ाएगा अमेरिका को अरब सागर और सेंट्रल एशिया के संवेदनशील क्षेत्रों में चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करने का एक अभूतपूर्व अवसर मिलेगा। 

खनिज पहुंच: पासनी के जरिए अमेरिकी निवेशकों को पाकिस्तान के महत्वपूर्ण खनिजों जैसे तांबा और एंटीमनी तक पहुंच मिलेगी जो अमेरिका के रक्षा और उन्नत प्रौद्योगिकियों के लिए महत्वपूर्ण हैं। 

सामरिक अड्डा एक नया बंदरगाह: भविष्य में अमेरिकी नौसेना US Navy के लिए एक सामरिक अड्डा Strategic Base बनने की संभावना रखता है, जिससे वह हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी निगरानी और उपस्थिति बढ़ा सकेगा। 

पाकिस्तान और अमेरिका के बीच यह 'पोर्ट डिप्लोमेसी' आने वाले समय में दक्षिण एशिया के राजनीतिक और आर्थिक भविष्य को नया आकार दे सकती है। 

'पासा' फेंका जा चुका है अब बारी है रणनीतिक जवाब की: पाकिस्तान ने पासनी में बंदरगाह का पासा फेंककर क्षेत्रीय भू-राजनीति को एक जटिल मोड़ पर ला खड़ा किया है। 

मुनीर की यह चाल न केवल अमेरिका से आर्थिक और रणनीतिक समर्थन हासिल करने का प्रयास है बल्कि चीन और भारत को एक अप्रत्याशित चुनौती देने की रणनीति भी है। 

पासनी के कारण चाबहार भारत और ग्वादर चीन के बीच की क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा अब एक त्रिकोणीय संघर्ष में बदल सकती है, जहां अमेरिका एक नया और शक्तिशाली खिलाड़ी होगा। 

भारत को अब इस नए समीकरण को देखते हुए अपनी रणनीतिक तैयारी तेज करनी होगी ताकि वह अरब सागर में अपने हितों और कनेक्टिविटी परियोजनाओं को सुरक्षित रख सके।

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